
सुमन का जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था। यह गाँव हरे-भरे खेतों और कच्चे घरों से घिरा था, जहाँ लोग दिन-रात मेहनत करते थे, लेकिन गरीबी की जंजीरों से मुक्त नहीं हो पाते थे। सुमन के पिता रामलाल एक किसान थे और माँ कमला घरों में काम करके दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम करती थीं। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उनके पास एक सपना था—अपनी बेटी को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना।
बचपन का संघर्ष
सुमन जब छोटी थी, तब से ही उसके घर में आर्थिक तंगी बनी रहती थी। स्कूल की फीस देना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसकी माँ ने दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा करके उसकी पढ़ाई का खर्चा उठाया। हर दिन जब उसकी माँ थकी-हारी घर लौटती, तब सुमन अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से माँ के पैर दबाती और कहती,
“माँ, एक दिन मैं बहुत बड़ी इंसान बनूँगी। फिर तुम्हें किसी के घर काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
उसकी माँ उसकी आँखों में सपने देखती और उसके सिर पर हाथ फेरकर कहती,
“बेटी, बस तू मेहनत करती रह, भगवान तेरा साथ देगा।”

गाँव की तंग सोच और चुनौतियाँ
सुमन जब बड़ी हुई, तो गाँव में उसे पढ़ाई से ज्यादा घर के कामों में ध्यान देने के लिए कहा जाने लगा। गाँव की औरतें उसकी माँ से कहतीं,
“कमला, लड़की को इतना पढ़ाकर क्या करेगी? आखिर उसे चूल्हा-चौका ही तो संभालना है।”
लेकिन उसकी माँ ने हमेशा उसका हौसला बढ़ाया। सुमन को भी एहसास था कि अगर वह पढ़ाई में पीछे रह गई, तो उसका जीवन भी बाकी गाँव की लड़कियों की तरह एक सीमित दायरे में ही रह जाएगा। वह पूरी शिद्दत से पढ़ाई में जुट गई।
पहला संघर्ष: किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे
गाँव का स्कूल सिर्फ आठवीं तक ही था। आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ता था, लेकिन पैसों की तंगी थी। एक दिन जब सुमन ने अपनी माँ से किताबों के लिए पैसे मांगे, तो उसकी माँ की आँखों में आँसू आ गए।
“बेटी, मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं। तेरा बाप भी बीमार पड़ा है।”
सुमन ने अपनी माँ के आँसू पोंछे और कहा,
“माँ, मैं खुद मेहनत करके पैसे जुटाऊँगी।”
उसने गाँव में छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे पैसे जमा किए। यह आसान नहीं था, लेकिन उसकी मेहनत रंग लाई और उसने किताबें खरीद लीं।

शहर जाने का सपना
दसवीं की परीक्षा में उसने पूरे जिले में पहला स्थान हासिल किया, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था। गाँव वालों ने उसे रोकने की कोशिश की,
“लड़कियों को शहर भेजना ठीक नहीं है।”
लेकिन उसकी माँ ने उसका साथ दिया। सुमन ने स्कॉलरशिप के लिए परीक्षा दी और उसे छात्रवृत्ति मिल गई। अब वह शहर जाकर पढ़ सकती थी।
शहर में संघर्ष: नई दुनिया, नए लोग
शहर की ज़िंदगी गाँव से बहुत अलग थी। ऊँची-ऊँची इमारतें, तेज़ रफ्तार गाड़ियाँ, और अंग्रेज़ी में बात करने वाले लोग—सुमन को यह सब अजीब लगता था। उसके पास अच्छे कपड़े नहीं थे, न ही अंग्रेज़ी में बात करने का आत्मविश्वास। कॉलेज में कई छात्र उसे देखकर हँसते और उसका मज़ाक उड़ाते।
“यह देखो, गाँव की लड़की! इसे अंग्रेज़ी भी नहीं आती!”
सुमन को बहुत बुरा लगता, लेकिन वह रोती नहीं थी। उसने मन ही मन ठान लिया,
“एक दिन मैं भी इन सबकी तरह आत्मविश्वास से भरपूर बनूँगी!”
हार न मानने की जिद
वह सुबह जल्दी उठती और अख़बार पढ़कर नए शब्द सीखती। लाइब्रेरी जाकर किताबें पढ़ती और रातभर जागकर पढ़ाई करती। धीरे-धीरे उसने अंग्रेज़ी बोलना सीख लिया। उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया।
एक दिन कॉलेज में भाषण प्रतियोगिता हुई। सबको यकीन था कि सुमन हार जाएगी, लेकिन जब उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना भाषण दिया, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उसने साबित कर दिया कि मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है।
सफलता की ओर पहला कदम
कॉलेज खत्म होने के बाद उसने एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू में उससे अंग्रेज़ी में सवाल पूछे गए, लेकिन इस बार वह घबराई नहीं। आत्मविश्वास के साथ उसने सभी सवालों के जवाब दिए और उसे नौकरी मिल गई।
जब वह पहली बार अपनी माँ को वेतन भेजने के लिए बैंक गई, तो उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। उसने फोन पर माँ से कहा,
“माँ, अब तुम्हें किसी के घर काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
सफलता का शिखर और गाँव की प्रेरणा
कुछ सालों बाद, वह एक बड़ी कंपनी की मैनेजर बन गई। अब जब वह गाँव जाती, तो वही लोग जो कभी उसे रोकते थे, गर्व से कहते,
“यह हमारी सुमन है! इसने गाँव का नाम रोशन कर दिया!”
उसने गाँव में एक स्कूल खोलने का फैसला किया ताकि किसी और लड़की को शिक्षा के लिए संघर्ष न करना पड़े। उसके इस कदम से गाँव की कई लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका मिला।
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निष्कर्ष
सुमन की यह कहानी सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि हर उस लड़की की कहानी है जो समाज की बेड़ियों को तोड़कर अपने सपनों को सच करना चाहती है। यह बताती है कि अगर इंसान मेहनत और आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य की ओर बढ़े, तो कोई भी मुश्किल उसे रोक नहीं सकती।
“संघर्ष ही सफलता की असली पहचान है!”